ग़ज़ल


                                          ~ग़ज़ल ~                   

                                                   💓💓            

रीत पुरानी आज तक निभा रहा हूं मैं।

पूर्वजों के गीत अबतक गा रहा हूं मैं।


सच वही है आज भी जो बीते काल थे 

बढ़े हैं आज झूठ जो बता रहा हूं मैं।


कश्तियां अपनी बढ़ा रख आंख साहिल पे,

दिन में घूमते चोर आ दिखा रहा हूं मैं।


पर्वतों से ले ज़मीं तक पाठशाला है 

कुदरत से पढ़ी पाठें पढ़ा रहा हूं मैं ।


जिन्दगी भी एक जमीं है रास्ते हजार ,

सम्हल के अदब से चलो जा रहा हूं मैं।

                                     -'प्यासा  💓💓  

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