झगड़ों ने मश्विरा दी है
बढ़ा प्रेम फैसला दी है।
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मंजूर जिसे नही बातें
मरने की सज़ा दी है ।
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जिंदगी नही कटे तन्हा,
जुदाइयों ने बता दी है ।
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हरियाली की महत्ता को
पतझड़ों ने समझा दी है।
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रंजिशें कब की थी 'प्यासा'
आज सभी को कजा दी है।
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विजय कुमार पाण्डेय
'प्यासा' ❤️❤️ग़ज़ल
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