बची विचारों को पाल रहा हूं।
चुभी खारों को निकाल रहा हूं।
जिन्हें नफरत सदा रही हमसे,
उन सारों को सम्हाल रहा हूं।
न तोड़े आशियाना फिर कोई,
नई दिवारों को डाल रहा हूं ।
उन्हे दिक्कत,समझता,मैं क्यों ,?
हर इसारों को सवाल रहा हूं ।
समस्याएं रोज ब रोज जैसे,
मैं खशारों को निकाल रहा हूं।
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