ग़ज़ल

~ग़ज़ल~
बची विचारों को पाल रहा हूं।
चुभी खारों को निकाल रहा हूं।

जिन्हें नफरत सदा रही हमसे,
उन सारों को सम्हाल रहा हूं।

न तोड़े आशियाना फिर कोई,
नई दिवारों को डाल रहा हूं ।

उन्हे दिक्कत,समझता,मैं क्यों ,?
हर इसारों को सवाल रहा हूं ।
       
समस्याएं रोज ब रोज जैसे,
 मैं खशारों को निकाल रहा हूं।
                             -'प्यासा'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें